बनो और बनाओ: एक अभियान, जो आपके भीतर से शुरू होता है

नमस्कार साथियों,

आज आपके समक्ष एक मित्र, एक सहयात्री की भूमिका में हूँ। आज मैं वो बातें साझा करना चाहता हूँ जो केवल किताबों में नहीं, बल्कि जीवन की प्रयोगशाला में सिद्ध हुआ है। एक ऐसा सोच, जिसे मैं केवल मानता नहीं, बल्कि हर साँस के साथ जी रहा हूँ, और जिसके परिणामों ने मेरे जीवन को रूपांतरित कर दिया है।

यह दो शब्दों का एक महामंत्र है: बनो और बनाओ।

सुनने में यह जितना सरल है, इसका प्रभाव उतना ही गहरा और क्रांतिकारी है। यह स्वयं को शून्य से शिखर तक गढ़ने और फिर अपनी क्षमताओं से समाज के लिए एक नया शिखर बनाने की कला है।

पहला चरण: “बनो” – आत्म-निर्माण की परम साधना

कल्पना कीजिए एक विशाल, अनगढ़ पत्थर की… उसमें एक शानदार प्रतिमा छिपी है, लेकिन उसे प्रकट करने के लिए छेनी-हथौड़ी की अनगिनत चोटें आवश्यक हैं। हम सब वही अनगढ़ पत्थर हैं और “बनने” की प्रक्रिया, वही साधना है। यह स्वयं के सर्वश्रेष्ठ संस्करण को तराशने की यात्रा है।

कैसे बनें? इसके चार मुख्य स्तंभ हैं:

  1. ज्ञान से बनो (बौद्धिक निर्माण): केवल डिग्रियाँ पाना ज्ञान नहीं है। ज्ञान है, जीवन को सही दृष्टिकोण से देखने की क्षमता। अपने मस्तिष्क को एक साधारण औजार नहीं, बल्कि एक तेज तलवार बनाइए। नई किताबें पढ़ें, नए विचारकों को सुनें, नए कौशल सीखें। अपने दिमाग को इतना उर्वर बनाइए कि उसमें समस्याओं के नहीं, समाधानों के विचार अंकुरित हों। ज्ञान आपको अंधकार में मार्ग दिखाएगा।
  2. चरित्र से बनो (नैतिक निर्माण): यह इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कठिन स्तंभ है। आपकी प्रतिभा आपको भीड़ में पहचान दिला सकती है, लेकिन आपका चरित्र उस पहचान को सम्मान में बदलता है। सत्यनिष्ठा को अपनी आदत नहीं, अपना स्वभाव बनाइए। अनुशासन को मजबूरी नहीं, अपनी इच्छाशक्ति का प्रमाण बनाइए। सत्य, करुणा और निस्वार्थता को अपने जीवन की नींव का पत्थर बनाइए। क्योंकि जब जीवन के तूफ़ान आते हैं, तो ऊंची इमारतें गिर जाती हैं, पर गहरी नींव वाली इमारतें अडिग रहती हैं।
  3. स्वास्थ्य से बनो (शारीरिक निर्माण): एक दुर्बल शरीर में एक शक्तिशाली मन का वास असंभव है। इस शरीर को केवल एक वाहन मत समझिए, इसे एक मंदिर मानिए। जैसा अन्न, वैसा मन। जैसा व्यायाम, वैसी ऊर्जा। अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनें। एक अनुशासित दिनचर्या, पौष्टिक आहार और नियमित व्यायाम… यह आपके “बनने” की प्रक्रिया को अद्भुत ऊर्जा प्रदान करेगा।
  4. विश्वास से बनो (आध्यात्मिक निर्माण): आप उस अनंत ब्रह्मांडीय चेतना का एक अंश हैं। अपनी क्षमताओं पर संदेह करना, उस परम शक्ति का अपमान है। स्वयं पर अटूट विश्वास पैदा करें। जब परिस्थितियाँ आपके विरुद्ध हों, तब आपका आत्मविश्वास आपका सबसे बड़ा शस्त्र होगा। ध्यान और आत्म-चिंतन के माध्यम से अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनें। यह आवाज़ आपको कभी गलत मार्ग पर नहीं जाने देगी।

दूसरा चरण: “बनाओ” – सृजन और प्रभाव का विस्तार

एक दीपक जब अपनी पूरी क्षमता से जलता है, तो उसका उद्देश्य केवल स्वयं प्रकाशित होना नहीं होता, बल्कि अपने चारों ओर के अंधकार को मिटाना होता है। “बनाने” की प्रक्रिया ठीक यही है। जब आप “बनने” की साधना में लीन हो जाते हैं, तो आपकी ऊर्जा, आपका औरा, आपका प्रभाव स्वतः ही आपके आस-पास के संसार को बदलने लगता है।

क्या बनाएँ?

  • संस्कारों का दुर्ग बनाओ: अपने घर को केवल ईंट-पत्थर का मकान नहीं, बल्कि प्रेम और सम्मान का एक ऐसा अभेद किला बनाएँ, जिसे दुनिया की कोई नकारात्मकता भेद न सके। आप केवल एक परिवार नहीं बना रहे, आप एक बेहतर पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं। याद रखें, एक मजबूत परिवार एक मजबूत राष्ट्र की नींव है।
  • अवसरों का राजमार्ग बनाएँ: यह शिकायत मत कीजिए कि अवसर नहीं हैं। स्वयं को इतना योग्य “बनाइए” कि आप दूसरों के लिए अवसरों का निर्माण कर सकें। कार्यक्षेत्र में केवल अपनी सफलता की सीढ़ी न बनें, बल्कि दूसरों के लिए अवसरों का राजमार्ग बनाएँ। ज्ञान को बाँटकर, दूसरों को प्रेरित करके और उनकी सफलता का माध्यम बनकर एक सच्चे लीडर बनें। एक बॉस को लोग भूल जाते हैं, लेकिन एक गुरु और निर्माता को पीढ़ियाँ याद रखती हैं। जब आप दूसरों को उठाते हैं, तो ब्रह्मांड आपको और ऊँचा उठाता है।
  • विश्वास की विरासत बनाएँ: निंदा और शिकायतों के महासागर में आप सकारात्मकता और विश्वास का द्वीप बनें। जहाँ सब समस्या गिना रहे हों, वहाँ आप समाधान बनें। अंत में लोग आपका बैंक बैलेंस या पद भूल जाएँगे, वे सिर्फ आपकी छोड़ी हुई प्रेरणा की विरासत को याद रखेंगे। आपका जीवन ही आपकी सबसे बड़ी रचना होनी चाहिए, एक ऐसी कहानी जो दूसरों को “बनने” और “बनाने” के लिए प्रेरित करे।

याद रखें, आपकी सबसे बड़ी रचना कोई वस्तु नहीं, बल्कि आपका प्रेरणादायी जीवन स्वयं है। आप एक व्यक्ति नहीं, एक विचार बन जाते हैं। और विचार कभी नहीं मरते।

इस यात्रा का ईंधन

अब आप सोचेंगे कि यह यात्रा तो बहुत कठिन है, परिणाम कब मिलेगा? यहीं पर गीता का वो शाश्वत ज्ञान हमारा मार्गदर्शक बनता है – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”

इसका अर्थ निष्क्रिय होना नहीं है। इसका गहरा अर्थ है, अपनी सारी ऊर्जा, अपना 100% ध्यान, अपनी पूरी चेतना केवल और केवल अपने वर्तमान कर्म, यानी “बनने” और “बनाने” की प्रक्रिया में लगा देना। परिणाम की चिंता एक ऐसा बोझ है जो आपकी गति को धीमा कर देती है। एक धनुर्धर का ध्यान केवल लक्ष्य पर होता है, तीर छूटने के बाद परिणाम की चिंता पर नहीं। जब आपका प्रयास पूरी ईमानदारी और निष्ठा से होता है, तो ब्रह्मांड आपको वह देने के लिए विवश हो जाता है जिसके आप अधिकारी हैं।

मैं पूरी विनम्रता और सत्यता से कहता हूँ कि मैं इस पथ पर चल रहा हूँ। हर दिन स्वयं को गढ़ता हूँ और अपनी क्षमताओं से कुछ बेहतर बनाने का ईमानदार प्रयास करता हूँ। और परिणाम? परिणाम मेरी कल्पना से भी परे, शानदार हैं।

एक आह्वान

यह केवल एक लेख नहीं, यह मेरे हृदय से निकला एक निमंत्रण है। यह उस क्रांति में शामिल होने का आह्वान है, जिसका रणक्षेत्र आपका अपना मन और कर्मक्षेत्र यह समाज है।

आइए, हम सब मिलकर ‘बनो और बनाओ’ के इस पंथ के अनुयायी बनें। यह किसी व्यक्ति का पंथ नहीं, यह एक विचार का, एक चेतना का पंथ है। एक ऐसा पंथ जिसका धर्म है ‘सृजन’, जिसकी पूजा है ‘कर्म’ और जिसका प्रसाद है ‘एक बेहतर दुनिया’।

अब आपको चुनना है। क्या आप एक साधारण जीवन जीकर इस दुनिया से विदा लेना चाहते हैं, या अपने पीछे पदचिन्हों की एक ऐसी विरासत छोड़कर जाना चाहते हैं जो आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करे?

यदि आपका उत्तर दूसरा है, तो उठिए! आज, अभी इसी क्षण संकल्प लीजिए। पहले स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने का, और फिर इस दुनिया में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने का।

आइये, मिलकर गढ़ते हैं – स्वयं को भी, और इस दुनिया को भी।

आपका सहयात्री,
पंकज शुक्ला

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