गुरु पूर्णिमा: मेरे पथ के हर प्रकाश स्तंभ को एक कृतज्ञ नमन

आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा है, जिसे हम सब ‘गुरु पूर्णिमा’ के पावन पर्व के रूप में मनाते हैं। यह केवल एक कैलेंडर की तारीख नहीं, बल्कि मेरे जैसे अनगिनत शिष्यों के लिए अपने जीवन को दिशा देने वाले, अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले हर ‘गुरु’ के प्रति अपनी असीम कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने का एक महापर्व है। आज इस विशेष अवसर पर, मैं अपने हृदय की गहराइयों से, अपने सभी गुरुओं को नमन करता हूँ, जिन्होंने मेरे जीवन को गढ़ा, सँवारा और सार्थक बनाया।

गुरु पूर्णिमा का महत्व: क्यों है यह दिन इतना विशेष?

इस पर्व का संबंध महर्षि वेदव्यास जी से है, जिन्हें मानवता का प्रथम गुरु माना जाता है। उन्होंने ही वेदों का वर्गीकरण किया, महाभारत जैसे महाकाव्य और अठारह पुराणों की रचना की। उनके द्वारा दिया गया ज्ञान आज भी मानवता का मार्गदर्शन कर रहा है। यह दिन उन्हीं के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, और इसीलिए इसे ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि ज्ञान की परंपरा कितनी प्राचीन और महान है। यह वर्षा ऋतु का भी आरंभ है, जो धरती को सींचकर नई फसल के लिए तैयार करती है, ठीक उसी तरह जैसे गुरु हमारे मन-मस्तिष्क को ज्ञान से सींचकर जीवन के लिए तैयार करते हैं।

कौन है गुरु? मेरी दृष्टि में गुरु

संस्कृत का एक श्लोक गुरु के सार को बड़ी सुंदरता से बताता है:
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥”

अर्थात्, गुरु ही ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पालक) और महेश (संहारक) हैं। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।

मेरे लिए ‘गुरु’ शब्द केवल कक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक तक सीमित नहीं है। गुरु एक अवधारणा है, एक ऊर्जा है, एक प्रकाश है। मेरे जीवन में गुरु कई रूपों में आए हैं:

  1. मेरे माता-पिता, मेरे प्रथम गुरु: जिन्होंने मुझे उंगली पकड़कर चलना सिखाया, मुझे संस्कार दिए और सही-गलत का पहला पाठ पढ़ाया। आपकी निस्वार्थ ममता और आपके दिए गए मूल्य ही मेरी नींव हैं। आपको मेरा पहला प्रणाम।
  2. मेरे शिक्षकगण, मेरे मार्गदर्शक: जिन्होंने किताबों के पन्नों से लेकर जीवन के समीकरणों तक, हर चुनौती के लिए मुझे तैयार किया। आपने केवल विषय नहीं पढ़ाए, बल्कि सीखने की ललक जगाई। आपकी डांट में भी एक सीख छिपी थी और आपकी प्रशंसा में मेरा आत्मविश्वास। आपके दिए ज्ञान के बिना मैं अधूरा होता।
  3. मेरे मित्र, मेरे सच्चे सलाहकार: कई बार जब मैं भटका या निराश हुआ, तो मेरे दोस्तों ने एक गुरु की तरह मुझे संभाला, मुझे आईना दिखाया और मेरा हौसला बढ़ाया। दोस्ती के रूप में मिले इस गुरुत्व को मैं सलाम करता हूँ।
  4. प्रकृति, मेरी मौन गुरु: एक पेड़ ने मुझे हर परिस्थिति में स्थिर रहना सिखाया, एक नदी ने मुझे निरंतर आगे बढ़ना सिखाया, और आसमान ने मुझे अपनी सोच को विशाल बनाना सिखाया। प्रकृति हर पल हमें कुछ न कुछ सिखाती है, बस एक शिष्य की दृष्टि चाहिए।
  5. मेरे अनुभव और मेरी गलतियाँ, मेरे कठोर गुरु: जीवन में मिली सफलता ने मुझे आत्मविश्वास दिया, तो असफलताओं और गलतियों ने मुझे सबसे बड़े सबक सिखाए। इन अनुभवों ने मुझे जो सिखाया, वह कोई किताब नहीं सिखा सकती थी। ये मेरे सबसे कठोर लेकिन सबसे प्रभावी गुरु रहे हैं।

गुरु-शिष्य परंपरा का सौंदर्य

गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा माना गया है, क्योंकि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग भी गुरु ही दिखाते हैं। गुरु केवल ज्ञान नहीं देते, वे शिष्य की क्षमताओं को पहचानकर उन्हें निखारते हैं। वे हमें पंख देते हैं, ताकि हम अपनी उड़ान खुद भर सकें। एक सच्चा गुरु कभी अपनी परछाई नहीं बनाता, बल्कि शिष्य को इतना योग्य बनाता है कि वह अपना प्रकाश स्वयं बन सके।

यह संबंध केवल ज्ञान के आदान-प्रदान का नहीं, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और विश्वास का है। गुरु की डांट में भी शिष्य का भला छिपा होता है और उनकी खामोशी में भी गहरा संदेश।

मेरा नमन और आभार

आज गुरु पूर्णिमा के इस पवित्र दिन पर, मैं अपने सभी ज्ञात और अज्ञात गुरुओं के चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।

  • उन गुरुओं को, जिन्होंने मुझ पर तब विश्वास किया जब मुझे खुद पर नहीं था।
  • उन गुरुओं को, जिन्होंने मेरी गलतियों पर मुझे डांटा ताकि मैं सही रास्ते पर आ सकूँ।
  • उन गुरुओं को, जिन्होंने मुझे सिर्फ उत्तर नहीं दिए, बल्कि सही प्रश्न पूछना सिखाया।
  • उन गुरुओं को, जिन्होंने मुझे सिखाया कि हार भी जीवन का एक हिस्सा है और गिरकर उठने वाला ही सच्चा विजेता होता है।

मैं आज जो कुछ भी हूँ, और भविष्य में जो कुछ भी बनूँगा, वह आपके द्वारा दी गई शिक्षा और संस्कारों का ही प्रतिबिंब होगा। आपका ऋण मैं कभी नहीं चुका सकता, बस आपके दिखाए मार्ग पर चलकर आपके नाम को रोशन करने का प्रयास कर सकता हूँ।

मेरे जीवन के हर मोड़ पर, प्रकाश स्तंभ बनकर खड़े मेरे सभी गुरुओं को, गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ और कोटि-कोटि नमन।

आपका आभारी शिष्य
पंकज शुक्ला

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top