कल मित्रता दिवस था। सोशल मीडिया पर तस्वीरों और शुभकामनाओं का सैलाब था। यह देखकर अच्छा लगता है कि हम रिश्तों को मनाने के लिए एक दिन समर्पित करते हैं। लेकिन कल की भागदौड़ में मैं इस पर कुछ लिख नहीं पाया, और शायद यह अच्छा ही हुआ। क्योंकि दोस्ती एक दिन की फ़ॉर्मेलिटी नहीं, बल्कि ज़िन्दगी भर का अहसास है, एक साधना है।
आज जब मैं इस पर लिखने बैठा हूँ, तो मन में कई सवाल हैं। आख़िर मित्र है कौन? क्या वो जिसके साथ हम घूमते-फिरते, खाते-पीते हैं? या वो जो हमारी हर पोस्ट पर लाइक और कमेंट करता है? या फिर दोस्ती का मतलब इससे कहीं ज़्यादा गहरा, कहीं ज़्यादा पवित्र है?
आइए, आज दोस्ती के इसी ताने-बाने को परत-दर-परत खोलने की कोशिश करते हैं।
मित्र क्या है? परिभाषा से परे एक एहसास
मित्र कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक एहसास है। एक भरोसा है कि दुनिया चाहे इधर की उधर हो जाए, एक इंसान है जो बिना किसी जजमेंट के आपके साथ खड़ा रहेगा। मित्र की कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती, क्योंकि वो हर किसी के जीवन में अलग-अलग भूमिकाएँ निभाता है।
- मित्र एक आईना है, जो आपको आपकी ख़ूबियाँ तो दिखाता ही है, लेकिन आपकी उन कमियों और ग़लतियों को भी दिखाने की हिम्मत रखता है, जिन्हें आप देखना नहीं चाहते।
- मित्र एक लंगर है, जो ज़िन्दगी के तूफ़ानों में आपकी नाव को भटकने और डूबने से बचाता है।
- मित्र एक पनाहगाह है, जहाँ आप अपने सारे मुखौटे उतारकर, बिना किसी डर के, वैसे रह सकते हैं जैसे आप असल में हैं।
- मित्र एक उत्प्रेरक (Catalyst) है, जो आपको बेहतर करने, आगे बढ़ने और अपनी सीमाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करता है।
सच्चे मित्र का धर्म: पहचान के 5 सूत्र
आज की दिखावे की दुनिया में सच्चे और मतलब के दोस्तों में फ़र्क करना बहुत मुश्किल है। लेकिन कुछ बातें हैं जो सच्चे मित्र की पहचान कराती हैं।
- आपकी सफलता से सच्ची ख़ुशी: जो आपकी तरक़्क़ी और ख़ुशी को देखकर आपसे ज़्यादा ख़ुश हो, जिसकी आँखों में आपके लिए जलन नहीं, बल्कि गर्व झलके, वही सच्चा मित्र है।
- कठिन समय में आपकी ढाल: जो अच्छे वक़्त में आपकी तारीफ़ों के पुल बाँधे, लेकिन मुश्किल आते ही फ़ोन उठाना बंद कर दे, वो दोस्त नहीं हो सकता। सच्चा मित्र वो है जो आपके बुरे समय में आपका साया बनकर आपके साथ खड़ा रहे।
- बिना झिझक के कड़वा सच: जो सिर्फ़ आपकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाए, वो आपका हितैषी नहीं हो सकता। सच्चा मित्र आपको ख़ुश करने के लिए झूठ नहीं बोलेगा, क्योंकि उसकी नीयत आपकी भलाई होती है।
- आपकी अनुपस्थिति में भी सम्मान: जो आपके मुँह पर आपकी तारीफ़ करे, लेकिन पीठ पीछे आपकी बुराई करे, उससे बड़ा शत्रु कोई नहीं। सच्चा मित्र वो है जो आपकी ग़ैर-मौजूदगी में भी आपका सम्मान बनाए रखे।
- आपको बेहतर इंसान बनाए: सच्चा मित्र आपको आपकी बुरी आदतों के साथ स्वीकार तो करेगा, लेकिन आपको उन आदतों से बाहर निकालने की लगातार कोशिश भी करेगा।
मित्र कैसे और किसे चुनें? कृष्ण की मित्रता
भगवान श्रीकृष्ण ने दो अद्भुत मित्रताएँ निभाईं – एक सुदामा से और एक अर्जुन से। इन्हीं दो रिश्तों में दोस्त चुनने का सबसे बड़ा राज़ छिपा है।
- कृष्ण-सुदामा (सम्मान की मित्रता): यह मित्रता सिखाती है कि दोस्ती में पद, पैसा या हैसियत कोई मायने नहीं रखती। ऐसे दोस्त चुनें जिनके दिल बड़े हों, हैसियत नहीं।
- कृष्ण-अर्जुन (मार्गदर्शक मित्रता): यह मित्रता सिखाती है कि एक दोस्त को आपका सारथी, आपका मार्गदर्शक भी होना चाहिए। ऐसे दोस्त चुनें जो आपको भ्रमित होने पर सही रास्ता दिखाएँ, जो आपको सिर्फ़ भावनात्मक सहारा ही नहीं, बल्कि बौद्धिक और आध्यात्मिक सहारा भी दें।
सबसे महत्वपूर्ण मित्रता: जो ख़ुद से है
हम पूरी ज़िन्दगी एक सच्चे मित्र की तलाश में रहते हैं। लेकिन सबसे बड़ी और सबसे ज़रूरी मित्रता को हम अक्सर भूल जाते हैं – वो दोस्ती जो हमें ख़ुद से निभानी है।
दूसरों का मित्र बनने से पहले, ख़ुद का मित्र बनना सीखिए। इसका मतलब है:
- अपनी ग़लतियों के लिए ख़ुद को माफ़ करना।
- जब आप गिरें, तो ख़ुद को सहारा देकर उठाना।
- अपनी छोटी-छोटी जीतों का जश्न मनाना।
- अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनना और उसका सम्मान करना।
- ख़ुद के साथ ईमानदारी बरतना, अपनी कमियों को स्वीकारना और उन्हें सुधारने का प्रयास करना।
जिस दिन आप ख़ुद के सबसे अच्छे दोस्त बन जाएँगे, उस दिन आपको बाहरी दुनिया में किसी सहारे की ज़रूरत महसूस होनी कम हो जाएगी। जो व्यक्ति ख़ुद से प्रेम करता है, वही दूसरों को निस्वार्थ प्रेम दे सकता है।
दोस्ती एक साधना है
मित्रता ख़रीदी नहीं जाती, यह कमाई जाती है। यह एक दो-तरफ़ा रास्ता है, जिसे विश्वास, सम्मान, समय और निस्वार्थ प्रेम से सींचना पड़ता है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर ऐसा कोई मित्र न मिले तो? अगर आप ख़ुद को अकेला पाएं तो?
तो जवाब सरल है – शिकायत करना बंद कीजिए और आप ख़ुद वो मित्र बन जाइए जिसकी आपको तलाश है। दूसरों के लिए वह आईना, वह लंगर, वह पनाहगाह बनिए जो आप अपने लिए ढूँढ रहे हैं। जब आप देना शुरू करते हैं, तो कायनात आपको सही लोग लौटाना शुरू कर देती है।
आपको हज़ारों दोस्तों की भीड़ की ज़रूरत नहीं है। अगर आपकी ज़िन्दगी में एक भी ऐसा इंसान है जिसे आप आधी रात को फ़ोन करके कह सकें कि “मैं मुसीबत में हूँ” और वो बिना सवाल किए कहे कि “कहाँ आना है?”, तो यक़ीन मानिए आप दुनिया के सबसे अमीर इंसान हैं।
और अगर नहीं है, तो निराश मत होइए। सबसे पहले ख़ुद के सबसे अच्छे दोस्त बनिए। फिर दूसरों के लिए एक सच्चा दोस्त बनने का धर्म निभाइए।
मित्रता दिवस तो बस एक बहाना है। असली जश्न तो हर उस पल में है जो आपने एक सच्चे दोस्त के साथ बिताया है, या फिर ख़ुद की संगत में सुकून से गुज़ारा है।