हमारी शिक्षा, सफलता और तुलना: एक अंतहीन मृगतृष्णा का सच

नमस्कार साथियों,

क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है कि आप एक दौड़ का हिस्सा हैं, जिसके नियम आपने नहीं बनाए? एक ऐसी दौड़ जिसमें आपके गले में डिग्रियों की माला है, आँखों पर समाज की उम्मीदों की पट्टी बंधी है और हाथ में दूसरों की सफलता का पैमाना है। आप बस भागे जा रहे हैं, हांफ रहे हैं, लेकिन मंज़िल एक मृगतृष्णा की तरह और दूर होती जा रही है।

आज मैं आपसे इसी दौड़, इसकी तथाकथित मंज़िल ‘सफलता’ और इस दौड़ को ज़हरीला बनाने वाले ईंधन ‘तुलना’ पर दिल से बात करना चाहता हूँ। यह लेख सिर्फ कुछ शब्द नहीं, बल्कि हम सबकी पीढ़ी के उस अनकहे दर्द, उस अंतर्द्वंद्व पर एक चिंतन है, जिससे शायद हम सब गुज़र रहे हैं।

ज्ञान की नींव या अंकों का बोझ? हमारी शिक्षा

हमारी शिक्षा प्रणाली की विडंबना देखिए। इसका उद्देश्य था हमें विवेकवान, जिज्ञासु और रचनात्मक बनाना। लेकिन यह हमें एक कुशल ‘रट्टू तोता’ बनाने की फैक्ट्री बनकर रह गई है। हमें सिखाया जाता है कि न्यूटन के नियम क्या हैं, पर यह महसूस नहीं कराया जाता कि जब हम गेंद को हवा में उछालते हैं, तो वही नियम कैसे जीवंत हो उठते हैं।

हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह हमें “क्या सोचना है” यह तो सिखाती है, पर “कैसे सोचना है” यह नहीं सिखाती। यह जानकारी का विशाल भंडार हमारे दिमाग में उड़ेल देती है, लेकिन उस जानकारी को ज्ञान और विवेक में बदलने की कला नहीं सिखाती।

ज्ञान को एक जीवित, बहती नदी बनाने की जगह, हमने उसे बोतलों में बंद जानकारी का एक ठहरा हुआ तालाब बना दिया है। हम डिग्रियाँ इकट्ठा कर रहे हैं, पर काबिलियत खोते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत हमारे आस-पास है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लाखों युवा इंजीनियर बनने के बाद भी उस क्षेत्र में रोज़गार के लायक नहीं हैं। क्यों? क्योंकि उन्होंने परीक्षा पास करना सीखा है, समस्याओं को हल करना नहीं।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कितनी सुंदर बात कही थी: “सर्वोच्च शिक्षा वह है जो हमें केवल जानकारी नहीं देती, बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव में लाती है।”

आज की शिक्षा हमें अस्तित्व से जोड़ने की बजाय, हमें एक-दूसरे से और खुद से ही तोड़ रही है। यह हमें यह नहीं सिखाती कि असफलता को कैसे संभालें, अपनी भावनाओं को कैसे समझें या अपनी अनोखी प्रतिभा को कैसे पहचानें। यह बस एक ही रास्ता दिखाती है – अच्छे अंक लाओ, अच्छी नौकरी पाओ, और ‘सेट’ हो जाओ।

सफलता का मायाजाल: हम क्या पा रहे हैं और क्या खो रहे हैं?

शिक्षा की इस अंधी सुरंग का अगला पड़ाव है ‘सफलता’। पर रुकिए, क्या है यह सफलता? समाज ने हमें एक रेडीमेड खाका थमा दिया है: ऊँची तनख्वाह, बड़ा घर, विदेशी छुट्टियाँ और सोशल मीडिया पर हज़ारों लाइक्स।

यह सफलता का ‘Standard of Living’ तो बढ़ा सकती है, पर ‘Standard of Life’ का क्या?

  • एक जीवंत उदाहरण सोचिए: एक तरफ आपका दोस्त है जो एक बड़ी MNC में काम करता है, जिसकी सैलरी आपसे तीन गुना है, पर जिसके पास अपने बूढ़े माँ-बाप के पास बैठने के लिए दस मिनट नहीं हैं। वह तनाव की गोलियाँ खाकर सोता है। दूसरी तरफ आप हैं, जो शायद कम कमाते हैं, पर अपना पसंदीदा काम (चाहे वो लिखना हो, संगीत हो या पढ़ाना हो) करते हैं और हर रात चैन की नींद सोते हैं। समाज की नज़र में सफल कौन है? शायद आपका दोस्त। पर दिल पर हाथ रखकर पूछिए, एक बेहतर, समृद्ध जीवन कौन जी रहा है?

यह सफलता का बाहरी ढाँचा एक ऐसा रेगिस्तान है जहाँ हम सब पानी की तलाश में भाग रहे हैं, पर हमें मिल रही है सिर्फ रेत। हम भौतिक चीज़ें जमा करने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमने आंतरिक शांति, स्वास्थ्य और रिश्तों की दौलत को खो दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े चौंकाते हैं कि भारत में अवसाद और चिंता के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं, जिसका एक बड़ा कारण पेशेवर और सामाजिक दबाव है।

असली सफलता यह नहीं है कि दुनिया की नज़र में आपकी हैसियत क्या है। असली सफलता यह है कि आपकी नज़र में आपकी ज़िंदगी की गुणवत्ता क्या है।

तुलना: वो धीमा ज़हर जो हमारी खुशियाँ चुरा रहा है

इस पूरी कहानी का सबसे खतरनाक खलनायक है ‘तुलना’। “शर्मा जी का बेटा देखो कहाँ पहुँच गया,” “उसकी शादी कितनी धूमधाम से हुई,” “उनके बच्चे तो फ़्लूएंट इंग्लिश बोलते हैं।”

ये वाक्य छोटे-छोटे तीरों की तरह हमारे आत्मविश्वास को हर रोज़ भेदते हैं। और सोशल मीडिया? यह तो तुलना का 24×7 चलने वाला कोलिज़ीयम है, जहाँ हम अपनी साधारण, पर्दे के पीछे की ज़िंदगी की तुलना दूसरों की सजी-सजाई, फ़िल्टर की हुई ‘हाईलाइट रील’ से करते हैं। हम उनकी ट्रॉफी देखते हैं, पर उस ट्रॉफी के लिए बहाया गया पसीना और आँसू नहीं देखते।

एक पश्चिमी विचारक ने कहा था, “Comparison is the thief of joy” (तुलना आनंद का चोर है)।

जब आप एक गुलाब के फूल की तुलना कमल से करते हैं, तो आप दोनों की सुंदरता का अपमान करते हैं। दोनों का परिवेश अलग है, दोनों के खिलने का समय अलग है। इसी तरह, आपकी यात्रा अनूठी है। आपका संघर्ष, आपकी क्षमताएं और आपकी समय-रेखा सिर्फ आपकी है। दूसरों की सफलता से प्रेरणा लेना बुद्धिमानी है, पर उनसे ईर्ष्या करके खुद को कमतर समझना मूर्खता है।

तो रास्ता क्या है? मृगतृष्णा से यथार्थ की ओर

सवाल यह नहीं है कि सिस्टम खराब है। सवाल यह है कि इस सिस्टम में रहते हुए हम खुद को कैसे बचा सकते हैं, कैसे एक सार्थक जीवन जी सकते हैं।

  1. अपनी शिक्षा खुद बनें: डिग्री से परे जाकर सीखें। किताबें पढ़ें, पॉडकास्ट सुनें, नए हुनर सीखें, यात्रा करें। अपनी जिज्ञासा को ज़िंदा रखें। असली शिक्षा वो है जो स्कूल खत्म होने के बाद शुरू होती है।
  2. सफलता की अपनी परिभाषा गढ़ें: एक कागज़ और कलम उठाइए और लिखिए कि आपके लिए सफलता का असली मतलब क्या है। क्या वो मन की शांति है? अच्छे स्वास्थ्य? प्यार भरे रिश्ते? या रचनात्मक संतुष्टि? अपनी सफलता का मेनिफेस्टो खुद तैयार करें, दुनिया को आपके लिए यह करने की इजाज़त न दें।
  3. तुलना के ज़हर से बचें: सचेत होकर अभ्यास करें। जब भी आप खुद को किसी से तुलना करते हुए पाएं, तो तुरंत रुकें। खुद को याद दिलाएं कि आपकी यात्रा अलग है। कृतज्ञता का अभ्यास करें – उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करें जो आपके पास हैं, उन पर नहीं जो नहीं हैं।

अंत में, याद रखिए, यह जीवन कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं है। यह एक कलाकृति है, और आप ही इसके कलाकार हैं। आपके पास अपने अनूठे रंग हैं, अपनी अनूठी तूलिका है। किसी और की नकल करके एक औसत दर्जे की तस्वीर क्यों बनानी? अपनी मौलिक, अद्भुत कृति का निर्माण कीजिए।

आपकी कहानी आपकी है। इसे किसी और की कहानी की कार्बन कॉपी मत बनने दीजिए। इसकी मौलिकता में ही इसकी असली खूबसूरती है।

आइए, इस दौड़ से बाहर निकलें और ज़िंदगी को ‘जीना’ शुरू करें।

3 thoughts on “हमारी शिक्षा, सफलता और तुलना: एक अंतहीन मृगतृष्णा का सच”

  1. Sir bahut km log aise topics pr paat karte hain, isi tarah ham students ka margdarshan karte rahiye🙏
    Thanks a lot sir ❤️

  2. Vaishnavi shukla

    एक सही रणनीति पर बात की है आपने,,,, अगर हम सब मिलकर इस पर ध्यान दे तो इसे सुधारा जा सकता है।,,,,,, धन्यवाद सर! आपका इतने बेहतरीन मुद्दे पर बात की।✍️🙏😊

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