डॉ. मनमोहन सिंह: भारतीय राजनीति के मृदुभाषी शिल्पकार

26 दिसंबर 2024 को, भारत ने एक ऐसे नेता को खो दिया, जिन्होंने अपनी ईमानदारी, विद्वता, और मृदुभाषी स्वभाव से राजनीति और अर्थव्यवस्था में अमिट छाप छोड़ी। डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक प्रेरणा है, लेकिन इसे केवल प्रशंसा के तराजू पर तोलना पर्याप्त नहीं होगा। उनकी उपलब्धियों और सीमाओं का संतुलित आकलन उनकी विरासत को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: संघर्ष से सफलता तक

डॉ. सिंह का जन्म 1932 में गाह, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ। विभाजन के बाद उनके परिवार ने अमृतसर में बसकर जीवन की नई शुरुआत की। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में अध्ययन कर उन्होंने अर्थशास्त्र में विशेषज्ञता प्राप्त की। उनका शिक्षा और संघर्ष का यह सफर दर्शाता है कि किस तरह साधारण पृष्ठभूमि का व्यक्ति असाधारण ऊंचाइयां छू सकता है।

आर्थिक सुधारों के शिल्पकार

1991 के आर्थिक संकट के समय, वित्त मंत्री के रूप में डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों ने देश को दिवालिया होने से बचाया और वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया।

हालांकि, इन नीतियों की आलोचना यह भी रही कि उन्होंने आर्थिक असमानता को बढ़ावा दिया। बड़े कॉर्पोरेट्स को लाभ हुआ, लेकिन गरीब और ग्रामीण भारत को अपेक्षित फायदा नहीं मिला।

प्रधानमंत्री के रूप में योगदान

2004 में, डॉ. सिंह भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री बने। उनके नेतृत्व में NREGA और RTI जैसे ऐतिहासिक कानून लागू हुए, जिन्होंने ग्रामीण रोजगार और सरकारी पारदर्शिता को बढ़ावा दिया। उनके कार्यकाल में भारत ने 8-9% GDP वृद्धि दर हासिल की और अमेरिका के साथ नागरिक परमाणु समझौते जैसे कूटनीतिक कदम उठाए।

किन्तु, उनके कार्यकाल को “नीतिगत लकवाग्रस्तता” (policy paralysis) के लिए भी याद किया जाता है। उनकी सरकार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों, जैसे 2G घोटाला और राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, से घिरी रही। यह उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाता, लेकिन प्रशासनिक अक्षमता पर जरूर उठाता है।

आलोचनाओं का दौर

डॉ. सिंह की नेतृत्व शैली अकादमिक और मृदुभाषी थी। यह एक ओर उनकी ताकत थी, लेकिन दूसरी ओर इसे कमजोर राजनीतिक नेतृत्व के रूप में भी देखा गया। उनके आलोचकों का मानना था कि वे अक्सर पार्टी के दबाव में काम करते थे और स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं थे।

विरासत: एक संतुलित दृष्टिकोण

डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत बहुआयामी है।

  • सकारात्मक पक्ष: आर्थिक सुधारों के जरिए भारत को वैश्विक मंच पर स्थापित करना, सामाजिक कल्याण योजनाओं को लागू करना, और कूटनीतिक सफलता हासिल करना।
  • नकारात्मक पक्ष: भ्रष्टाचार के आरोप, नीतिगत स्थिरता की कमी, और आर्थिक असमानता।

डॉ. सिंह का जीवन यह सिखाता है कि विद्वता और ईमानदारी से नेतृत्व किया जा सकता है। उनके योगदान और आलोचनाओं का संतुलन उन्हें एक जटिल लेकिन प्रेरणादायक नेता बनाता है। भारत उनके कार्यों को हमेशा याद रखेगा।

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