मेरे जन्मदिन पर विशेष: गलतियाँ, सीख और आने वाला कल

आज का दिन मेरे लिए बहुत ख़ास है। आज मेरा जन्मदिन है। आज सुबह से ही मैं आत्म-विश्लेषण की गहराइयों में डूबा हुआ था। मन में एक संघर्ष चल रहा था कि इतने साल बीत गए, वक़्त रेत की तरह हाथों से फिसल गया, लेकिन मैं जो बनना चाहता था, जो मेरा उद्देश्य था, उसका कुछ हिस्सा भी पूरा न कर सका। इस बात की एक टीस दिल में है।

लेकिन… इसी टीस के बीच एक सुकून भी है। जब मैंने अपने आज की तुलना अपने बीते हुए कल से की, तो पाया कि अपने उद्देश्य को पाने की कोशिश में, मैं पहले के पंकज से हज़ारों गुना बेहतर बन चुका हूँ। मैंने इस यात्रा में अपने अंदर की न जाने कितनी कमज़ोरियों को जड़ से उखाड़ फेंका है।

आज मैं यह लेख लिख रहा हूँ, क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप भी मेरी इस कहानी के हिस्सेदार बनें। यह कहानी बड़ी रोचक रही है, जिसमें कई भयंकर तूफ़ान आए, तो कई ख़ूबसूरत फूल भी खिले हैं।

कहानी की शुरुआत

चलिए, कहानी शुरू करते हैं। ज़्यादा पीछे नहीं, साल 2017 से। मैं कॉलेज में पहुँच चुका था। एक ऐसा लड़का जिसे पढ़ाई के अलावा दुनियादारी की ज़्यादा समझ नहीं थी। कौशल के मामले में शून्य था और न ही 12वीं में कोई 95% वाला तमगा था, हाँ 80-90 के बीच की सम्मानजनक गाड़ी चल रही थी। शतरंज, नाटक और योग में थोड़ी बहुत रुचि थी और स्कूल के कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले लिया करता था। एक काम जो मैंने 11वीं कक्षा से ही शुरू कर दिया था, वह था पढ़ाना। कॉलेज तक आते-आते मैंने लगभग 200-300 बच्चों को पढ़ाया होगा।

लेकिन इन सबके बावजूद, मैं बहुत ही अंतर्मुखी स्वभाव का था। मतलब, बहुत ही ज़्यादा। न शक्ल-सूरत में कोई ख़ास बात, न बोलने की कला में माहिर। बस काम चल रहा था, या यूँ कहूँ कि ज़िन्दगी घुटनों पर घिसट रही थी।

महामारी: एक संकट जो अवसर बन गया

कॉलेज ख़त्म होते-होते 2020 में कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी। 2022 तक इसका प्रभाव रहा और मेरी परास्नातक की परीक्षा भी लगभग 2023 की शुरुआत में जाकर हुई। लेकिन यही वह दौर था, जिसने मेरी ज़िन्दगी की दिशा बदल दी।

जब मैंने देखा कि लोगों की नौकरियाँ जा रही हैं, हज़ारों लोग शहरों से अपने गाँव लौट रहे हैं, स्कूल बंद हो चुके हैं, तो मन में एक सवाल उठा – “अब क्या किया जाए?” मैंने अपने उन सभी स्टूडेंट्स से बात की जो फ़ीस नहीं दे सकते थे। मैंने उन्हें और उनके साथियों को बिना किसी शुल्क के ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया। जब पिताजी से सलाह ली, तो उन्होंने कहा, “इसे एक संस्था बनाकर करो।” और यहीं से 23 सितंबर 2020 को “जन अभ्युदय सेवा फाउंडेशन” का जन्म हुआ।

मुझे संस्था चलानी नहीं आती थी, पर मैंने कोशिश की। RSS और स्थानीय युवा संगठनों के साथ मिलकर कोरोना काल में लोगों तक भोजन और शिक्षा पहुँचाने जैसे कई सामाजिक कार्य किए। इसी दौरान मेरी झिझक टूटी, मैं लोगों से जुड़ना और खुलकर बात करना सीखने लगा। पहले मैं अपने काम को शेयर करने से डरता था कि लोग कहेंगे, “दिखावा करता है।” मैं लोगों की सोच को ध्यान में रखकर फ़ैसले लेता था। लेकिन अब मैंने प्रबंधन, तकनीक और बोलने की कला पर काम करना शुरू कर दिया था।

इस कोरोना काल में मैं अपनी टेक्निकल स्किल्स पर बहुत काम किया जिसकी वजह से बाद में अपने Tech Vimarsh जो की Technology startup है, उसको शुरू कर पाया।

बदलाव की लहर: जब संगति ने क़ीमत तय की

2021 से लेकर 2023 तक मैं सम्भवम, अखिल विश्व गायत्री परिवार, दीया दिल्ली फाउंडेशन, सूद चैरिटी फाउंडेशन, प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन जैसे और भी बड़े संगठनों से जुड़ चुका था। यहाँ मैंने एक परिवार की तरह पूरे देश के UPSC अभ्यर्थियों और अन्य साथियों के साथ काम किया। जो मुझे आता था, वह मैंने सिखाया और जो दूसरों को आता था, वह मैंने सीखा।

2023 में, कई महीनों के गहरे अध्ययन और रिसर्च के बाद मैंने उद्यमिता पर अपनी पहली किताब लिखी। 2025 आते-आते, मैंने अपने कौशल पर बहुत काम किया, लेकिन सबसे ज़रूरी काम मैंने अपनी संगति पर किया। मैं जिस संगत में पहले था, वे लोग या तो गिराने वाले थे या हतोत्साहित करने वाले। वे दूसरों की मदद करने को “टाइम पास” मानते थे और कहते थे, “पहले ख़ुद तो कुछ बन जाओ, सफल हो जाओ, फिर ये सब करना।” उनकी नज़र में सफलता का मतलब सिर्फ़ डॉक्टर या इंजीनियर आदि बनना था।

मैंने उनकी यह बात स्वीकार नहीं की। मैंने अपनी संगति को ऊंचाई दी, बेहतर लोगों को चुना, और उन महापुरुषों की किताबें पढ़ने लगा जो विचारों को और जीवन को बल देते हैं।

इस सफ़र ने मुझे ज़मीन से उठाकर उन लोगों के साथ काम करने का मौक़ा दिया, जिनसे मिलना कभी आसान नहीं हुआ करता था – कई बेहतरीन शिक्षक, IITians, अभिनेता, IAS, IPS अधिकारी, राजनेता, और अपने-अपने क्षेत्र के माहिर लोग। कुछ अवार्ड्स भी मिले, लेकिन ये अवार्ड्स मेरी जीत नहीं हैं।

आज मुझे खुद पर गर्व होता है की, अभी तक लगभग 5000+ घंटे का शिक्षण और प्रशिक्षण कर चुका हूँ जो हमारे टीम के सहयोग से हजारों युवाओं और विद्यार्थियों को बेहतर बनाने में कुछ भूमिका निभा पाया और यही प्रयास जारी रहेगा।

मेरी असली जीत लोगों को बेहतर बनाने में है, दूसरों को सशक्त(Empower) करने में है, उन्हें उनका सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनाने में है। उनकी सफलता ही मेरी सफलता है, क्योंकि मेरा मानना है कि बेहतर करने की प्रक्रिया और प्रयास में होना ही असली जीत है।

जीवन की पाठशाला से मिले कुछ कड़वे-मीठे सबक

इस यात्रा में मैंने जो सीखा है, वह किताबों में नहीं मिलता। यह अनुभव की आग में तपकर निकला सोना है। कुछ सबक बहुत कड़वे हैं, जिन्हें स्वीकार करना मुश्किल था, पर ज़रूरी था। आज मैं वही आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

1. आप ही अपने सबसे बड़े साथी और सबसे बड़े उद्धारक हैं
इस दुनिया की भीड़ में हम अक्सर एक साथी, एक सहारे की तलाश में रहते हैं। लेकिन मैंने सीखा है कि आपका सबसे सच्चा और सबसे भरोसेमंद साथी कोई और नहीं, बल्कि आप ख़ुद हैं। आपको ही ख़ुद का कृष्ण और ख़ुद का अर्जुन बनना होगा। लोग आपकी मदद करने का वादा करेंगे, कुछ देर साथ चलेंगे भी, लेकिन अंत में अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी को दलदल से निकालने की पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी होगी। कोई बहाना नहीं चलेगा, क्योंकि दुनिया आपके संघर्ष के पसीने को नहीं, आपकी जीत के मेडल को देखती है। इसलिए ख़ुद को इतना मज़बूत बनाइए कि किसी और के सहारे की ज़रूरत ही न पड़े। सच्चा मित्र वही है जो आपको सही दिशा दिखाए, और यह काम सबसे बेहतर तरीक़े से आपकी अपनी अंतरात्मा ही कर सकती है। बाक़ी लोग तो ज़रूरत पड़ने पर “हम आपके हैं कौन” कहने में देर नहीं लगाते।

2. कौशल ही आपकी असली शक्ति है, डिग्रियाँ नहीं
मैंने जाना कि डिग्रियाँ आपको एक दरवाज़े तक पहुँचा सकती हैं, लेकिन उस दरवाज़े के अंदर आपका भविष्य सिर्फ़ आपका हुनर, आपका कौशल ही तय करता है। जीवन के हर आयाम में उत्कृष्टता पाने के लिए कौशल हासिल कीजिए। पैसा कमाने का कौशल, लोगों से बात करने का कौशल, अपने समय को सँभालने का कौशल, और सबसे ज़रूरी, ख़ुद को भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाने का कौशल ताकि कोई आपका दुरुपयोग न कर सके। अपने तरकश में इतने तीर जमा कर लीजिए कि हर चुनौती का सामना आप आत्मविश्वास से कर सकें। एक आजीवन विद्यार्थी बने रहिए, क्योंकि जिस दिन आपने सीखना बंद कर दिया, उसी दिन आपने आगे बढ़ना बंद कर दिया।

3. हर दिन ख़ुद से लड़िए और ख़ुद को हराइए
आइने के सामने सिर्फ़ चेहरा मत देखिए, अपना चरित्र देखिए। हर रोज़ ख़ुद का आत्म-निरीक्षण और परीक्षण कीजिए। यह एक साधना है, जो अच्छी लगे या न लगे, पर करनी ही पड़ेगी। अपनी कमज़ोरियों को पहचानिए और उन पर पूरी ताक़त से वार कीजिए। हर दिन अपने कल के संस्करण से बेहतर बनने की कोशिश कीजिए। अपनी सफलता की परिभाषा ख़ुद तय कीजिए, उसे समाज के हाथ में मत सौंपिए। लोगों की बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दीजिए; अगर आलोचना सही है तो विश्लेषण करके ख़ुद को सुधारिए, और अगर ग़लत है तो उसे कचरे की तरह दिमाग से बाहर फेंक दीजिए।

4. “बनो और बनाओ” के सिद्धांत पर जिएँ
जीवन का असली अर्थ सिर्फ़ ख़ुद बेहतर बनने में नहीं, बल्कि दूसरों को भी बेहतर बनाने में है। जब आप किसी और को उठाते हैं, तो आप ख़ुद और ऊँचा उठ जाते हैं। सिर्फ़ अँधेरे को कोसने से कुछ नहीं होगा, अपने हिस्से का दीया जलाना शुरू कीजिए। जब आप किसी को कुछ सिखाते हैं, तो सबसे ज़्यादा आप ख़ुद सीखते हैं। दूसरों की मदद करना कोई एहसान नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है। यह आपको स्वार्थी होने से बचाता है और जीवन को एक बड़ा उद्देश्य देता है।

5. आपका शरीर एक मंदिर है, इसे कमज़ोर मत होने दीजिए
हम अक्सर बड़े-बड़े लक्ष्यों के पीछे भागते हुए सबसे ज़रूरी चीज़ को भूल जाते हैं – हमारा स्वास्थ्य। “शरीरं आद्यं खलु धर्म साधनम्” – अर्थात, यह शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का एकमात्र माध्यम है। अपने शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दीजिए। अगर आपका शरीर और मन ही आपका साथ नहीं देंगे, तो आप दुनिया में कोई भी जंग नहीं जीत सकते। यह शरीर आपके सपनों को हक़ीक़त में बदलने का औज़ार है, इसे हमेशा मज़बूत और तैयार रखिए। एक छोटे से लापरवाही की वजह से 2023 दिसम्बर में मेरा एक भयानक एक्सीडेंट हुआ था जिसकी वजह से लगभग एक साल बहुत दिक्कते आईं लेकिन मैंने अपनों के सहयोग से इन सब का डटकर सामना किया और आज लगभग पूरी तरह स्वस्थ हूँ। मैं शारीरिक समस्या को झेल चुका हूँ बहुत पीड़ादायी होता है, इसीलिए इस शरीर का विशेष ध्यान रखिए।

6. सही रास्ते पर अकेले चलने का साहस रखिए
सत्य और धर्म का मार्ग अक्सर अकेला और पथरीला होता है। इस रास्ते पर चलेंगे तो बहुत कुछ छूटेगा, बहुत से अपने पराए हो जाएँगे, बहुत बलिदान देना होगा। लेकिन अंत में आपको जो आत्म-गौरव और आत्म-संतोष मिलेगा, वह किसी भी भीड़ भरे ग़लत रास्ते पर चलने से हज़ारों गुना बेहतर होगा। जैसा भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था, फल की इच्छा के बिना अपने कर्तव्य का पालन करो, इसी में तुम्हारी जीत है। याद रखिए, आपकी संगति आपकी क़ीमत तय कर देती है। कृष्ण की संगति विजय दिलाती है और दुर्योधन की संगति पराजय। चुनाव हमेशा आपका होता है, और जो लोग आपको आपके बेहतर रूप में स्वीकार नहीं कर सकते, उन्हें अपने जीवन से दूर करने का साहस आपको ही दिखाना होगा।

7. ज़िम्मेदारी लेना सीखो, सिर्फ समस्याओं को दोष मत दो: व्यवस्था को, सरकार को, हालातों को, या किस्मत को दोष देना बहुत आसान है। लेकिन नायक और विजेता उँगलियाँ नहीं उठाते, वे हाथ उठाकर पूछते हैं – ‘मैं क्या कर सकता हूँ?’ असली विकास उस दिन शुरू होता है जिस दिन आप हालातों के ‘शिकार’ बनना छोड़कर अपने भाग्य के ‘शिल्पकार’ बनते हैं। अगर समाज में अँधेरा है तो सिर्फ उसकी शिकायत मत करो, वो छोटा सा दीया बनो जो अपने हिस्से का कोना रोशन कर सके। अगर सड़क पर गंदगी है, तो किसी का इंतज़ार मत करो, अपने दरवाज़े के सामने का हिस्सा ख़ुद साफ़ करो। ज़िम्मेदारी बोझ नहीं, शक्ति है। यह बदलाव लाने की शक्ति है जो आपके अपने हाथों में है।

8. सिर्फ़ मानिए नहीं, जानिए भी और जीकर दिखाइए
हम अपने महापुरुषों को पूजते हैं, उनकी तस्वीरें लगाते हैं, लेकिन उनके विचारों को अपने जीवन में नहीं उतारते। यह सबसे बड़ा पाखंड है। अगर हमने गीता से कुछ सीखा होता, तो आज समाज में हो रहे अधर्म और अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते। हमारे महापुरुषों का असली सम्मान उनकी बताई राह पर चलने में है, न कि सिर्फ़ विशेष दिनों पर उन्हें याद कर लेने में। हमें स्वामी विवेकानंद के सपनों के उन 100 युवाओं में से एक बनना है जो दुनिया बदलने का जज़्बा रखते हैं। सिर्फ़ एक अनुयायी नहीं, एक साधक बनिए। होश के साथ जिएँ, आँखें बंद करके नहीं।

9. आज का काम कल पर मत टालो, क्योंकि टालमटोल एक मीठा ज़हर है: यह एक ऐसी बीमारी है जो सपनों को ख़ामोशी से मार देती है। मैं ख़ुद इस आदत का बड़ा शिकार रहा हूँ। ‘कल करेंगे’ का छोटा सा विचार आपके आज की ऊर्जा और कल के अवसरों, दोनों को खा जाता है। मैंने सीखा है कि इस आदत को तोड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है, बस शुरू कर देना। चाहे कितना भी छोटा कदम क्यों न हो। 5 मिनट के लिए ही सही, पर उस काम को शुरू कर दो। एक बार जब गति बन जाती है, तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है। यह लड़ाई आज भी जारी है, पर अब मैं पहले से ज़्यादा मज़बूत हूँ।

10. उम्र सिर्फ़ एक संख्या है, यह आपकी सफलता का पैमाना नहीं: समाज ने सफलता के लिए उम्र के कुछ अदृश्य पैमाने बना रखे हैं – इस उम्र तक पढ़ लो, इस उम्र तक नौकरी पा लो, इस उम्र तक सफल हो जाओ। यह सबसे बड़ा भ्रम है। मैंने सीखा है कि सफलता का उम्र से कोई वास्ता नहीं होता। असली चीज़ है आपके अंदर की आग, आपके दिल की आवाज़। जब वह आवाज़ आए, तो उम्र, हालात या लोगों की बातों की परवाह मत करो। बस उस काम में कूद पड़ो, क्योंकि आपका ‘सही समय’ तब है जब आपका दिल कहता है ‘अब’।

और भी बहुत सी सीखें हैं जिन्हे फिर कभी बताऊँगा।

सफ़र, मंज़िल से कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत है

आज, इतनी यात्रा के बाद भी, मैं ख़ुद से नाराज़ हूँ कि मैंने जो अपना व्यक्तिगत संविधान बनाया था, उसका 30% भी हासिल नहीं कर पाया। शायद मैंने पूरा प्रयास ही नहीं किया।

तो आज, अपने जन्मदिन पर, जब मैं अपने जीवन की किताब के पन्ने पलटता हूँ, तो क्या पाता हूँ? क्या मुझे इस बात का मलाल है कि मैं अपने बनाए व्यक्तिगत संविधान का 30 प्रतिशत भी हासिल नहीं कर पाया? हाँ, वह टीस, वह कसक आज भी मेरे सीने में है। लेकिन अब उसका रूप बदल गया है। पहले यह एक निराशा थी, एक बोझ थी, पर आज यह एक चुम्बक है, एक दिशा सूचक है जो मुझे लगातार याद दिलाता है कि मुझे अभी और कितना आगे जाना है। यह इस बात का प्रमाण है कि मैंने अपने लिए कितने ऊँचे मानक तय किए थे।

मैंने अपनी इस यात्रा में एक बहुत बड़ी सच्चाई जानी है – सफलता किसी चमकते हुए ताज को पहन लेने या किसी ऊँची कुर्सी पर बैठ जाने का नाम नहीं है। सफलता उस ताज तक पहुँचने के लिए काँटों भरे रास्ते पर नंगे पाँव चलने, गिरने और फिर से उठकर चलने के साहस का नाम है। इस प्रक्रिया में ख़ुद को हर दिन परखना, अपनी पुरानी मान्यताओं को तोड़ना, और फिर अपनी ही राख से ख़ुद को एक बेहतर और मज़बूत आकार में गढ़ना ही असल में जीत है।

शायद मैं वो सब कुछ नहीं बन पाया जो मैंने सोचा था, लेकिन उस बनने की अनवरत कोशिश ने मुझे एक ऐसा इंसान ज़रूर बना दिया है, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। और आज मुझे लगता है कि मंज़िल की तलाश में मैं एक मुसाफ़िर से कहीं ज़्यादा, एक रास्ता बन गया हूँ; एक ऐसा रास्ता जिस पर चलकर शायद कुछ और भटके हुए राही अपनी सही दिशा पा सकें।

यह अंत नहीं है। यह तो कहानी का एक पड़ाव है, एक अल्पविराम। यहाँ से एक नया अध्याय शुरू हो रहा है। मेरी लड़ाई अभी भी जारी है – ख़ुद की बची हुई कमज़ोरियों से, बाहर की चुनौतियों से, और अपने ही बनाए हुए और भी ऊँचे लक्ष्यों से। मेरा मिशन, मेरा ध्रुव तारा बिलकुल स्पष्ट है – “बनो और बनाओ।” ख़ुद को गढ़ना है, ख़ुद को उत्कृष्टता की उस पराकाष्ठा तक ले जाना है, जहाँ से मैं दूसरों को उठाने में और ज़्यादा सक्षम बन सकूँ। मेरी आने वाली किताब “The 50” भी इसी मिशन की एक कड़ी है। वह सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि मेरे अनुभवों और सीखों का एक संकलित प्रयास होगी, ताकि जो ठोकरें मैंने खाईं, उनसे सीखकर कोई और अपना रास्ता थोड़ा आसान बना सके।

आभार: जिनके बिना मैं अधूरा हूँ

यह सफ़र मेरा अकेले का कभी था ही नहीं। इसकी हर ईंट को जोड़ने में अनगिनत हाथों का योगदान है। आज इस विशेष दिन पर, मैं उन सभी का हृदय की गहराइयों से आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जो इस यात्रा में मेरे स्तंभ बने, मेरी ताक़त बने।

  • मेरा परिवार: मेरी चट्टान, जिसने हर तूफ़ान में मुझे बिखरने से बचाया। मेरे हर अव्यावहारिक लगने वाले फ़ैसले और हर सनक भरे सपने पर आँख मूँदकर भरोसा करने के लिए आपका शुक्रिया। आपकी दी हुई नींव पर ही मैं आज खड़ा हूँ।
  • मेरे गुरु और मित्र: वो सच्चे सारथी, जिन्होंने मेरे जीवन-रथ को सही दिशा दी। जब भी मैं भटका, उन्होंने कान पकड़कर मुझे सही रास्ते पर खड़ा किया और मेरी छोटी-छोटी जीतों पर भी मुझसे ज़्यादा जश्न मनाया। आपकी दोस्ती मेरी सबसे बड़ी कमाई है।
  • मेरे प्रिय विद्यार्थी, मेंटी और ट्रेनी: आप सिर्फ़ मेरे सिर्फ विद्यार्थी ही नहीं, मेरे गुरु भी रहे हैं। आपको सिखाने की कोशिश में, सबसे ज़्यादा मैंने ख़ुद को जाना है और सीखा है। उस समय भी जब मैं ख़ुद सीख रहा था, आपने मुझ पर जो विश्वास दिखाया, वही मेरी सबसे बड़ी पूँजी है। आपकी आँखों में सीखने की चमक ने मेरे मिशन को ज़िंदा रखा। आपकी सफलता में ही मैंने अपनी सार्थकता पाई है। आपका बहुत-बहुत आभार।
  • मेरे आलोचक और मुझ पर संदेह करने वाले: आपका भी हृदय से धन्यवाद। अगर आप न होते, तो शायद मुझमें ख़ुद को साबित करने की आग इतनी प्रबल कभी न होती। आपके फेंके हुए पत्थरों से ही मैंने अपनी सफलता की नींव को और मज़बूत बनाया है। आपने मुझे विनम्र रहना और हमेशा सीखते रहना सिखाया।
  • और अंत में, उस अदृश्य शक्ति का, उस परमसत्ता का: जिसके आशीर्वाद और इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। मैं तो सिर्फ़ एक माध्यम हूँ, करने और कराने वाला वही है। उसके दिखाए रास्ते पर चलने का बल मिलता रहे, यही प्रार्थना है।

अंत में, मैं आप सब से, जो यह पढ़ रहे हैं, बस यही कहना चाहता हूँ कि अपनी क़ीमत पहचानिए। आप अद्वितीय हैं, आपकी कहानी अद्वितीय है। अपनी ज़िंदगी का रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथ में मत दीजिए। ख़ुद से लड़िए, ख़ुद को जीतिए, क्योंकि दुनिया में जीतने से पहले यह सबसे ज़रूरी जंग है।

अपने हिस्से का दीया जलाइए। क्या पता, आपके जलाए एक अकेले दीये की लौ से, हज़ारों और बुझे हुए दीये रोशन हो जाएँ।

यह सफ़र जारी है…

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top