युवको! तुम बलवान बनो – शरीर से, मन से, आत्मा से। दुःख भोग का एकमात्र कारण दुर्बलता है। हम दुखी हो जाते हैं, तरह-तरह के अपराध करते हैं, क्योंकि हम दुर्बल हैं। हम दुःख भोगते हैं, क्योंकि हम दुर्बल हैं। जहाँ हमें दुर्बल कर देने वाली कोई चीज नहीं, वहाँ न मृत्यु है और न दुःख है।
बल ही एकमात्र आवश्यक संपदा है। बल ही भवरोग की एकमात्र दवा है। धनिकों द्वारा रौंदे जाने वाले निर्धनों के लिए बल ही एकमात्र दवा है। विद्वानों द्वारा दबाए जाने वाले अज्ञजनों के लिए भी बल ही एकमात्र दवा है। हम काफी रो लिए, अब और रोने की आवश्यकता नहीं। अब अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और मनुष्य बनो। हम मनुष्य बनाने वाला धर्म ही चाहते हैं, हम मनुष्य बनाने वाले सिद्धांत ही चाहते हैं, हम सर्वत्र सभी क्षेत्रों में मनुष्य बनाने वाली शिक्षा ही चाहते हैं। केवल मनुष्यों की आवश्यकता है। अन्य सबकुछ हो जाएगा, किंतु आवश्यकता है वीर्यवान, तेजस्वी, श्रद्धा संपन्न और अंत तक कपटरहित नवयुवकों (उत्साही कार्यकर्त्ताओं) की। ऐसे सौ नवयुवकों से संसार के सभी भाव बदल दिए जा सकते हैं।
उठो, साहसी बनो, वीर्यवान होओ, सब आवश्यक उत्तरदायित्व अपने कंधों पर लो। यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, वह सब कुछ तुम्हारे भीतर विद्यमान है। वीरो! यह विश्वास रखो कि तुम्हीं सब कुछ हो, महान कार्य करने के लिए इस धरती पर आए हो। गीदड़-घुड़कियों से भयभीत मत हो जाना। चाहे वज्र भी गिरे तो भी निडर होकर खड़े हो जाना और कार्य में लग जाना।
तुम रोते क्यों हो? तुम्हीं में तो सारी शक्ति सन्निहित है। अपनी-अपनी सर्वशक्ति संपन्न मानव प्रकृति को उद्बुद्ध करो, तुम देखोगे कि यह सारी दुनिया तुम्हारे पैरों पर लोटने लगेगी। आज देश को आवश्यकता है, साहस और वैज्ञानिक प्रतिभा की। हम चाहते हैं प्रबल पराक्रम, प्रचंड शक्ति और अदम्य साहस। पीछे देखने का काम नहीं, आगे! आगे बढ़े चलो। हम चाहते हैं अनंत शक्ति, असीम उत्साह, अटूट साहस और अविचल धैर्य, तभी महान कार्य संपन्न होंगे।
आत्मविश्वास रखो। तुम्हीं लोग तो पूर्वकाल में ऋषि-मुनि आदि थे। अब केवल शरीर बदलकर आए हो। मैं दिव्य चक्षुओं से देख रहा हूँ, तुम लोगों में अनंत शक्ति है। उस शक्ति को जाग्रत करो। अरे! मृत्यु जब अवश्यंभावी है, तो कीट-पतंगों की तरह मरने की बजाय, वीरों की तरह मरना अच्छा है। इस अनित्य संसार में दो दिन अधिक जीवित रहकर भी क्या लाभ? ‘इट इज बैटर टू वियर आउट दैन टू रस्ट आउट’ (जंग लगकर समाप्त होने से अच्छा है, उपयोगी बनकर घिस जाना)। जराजीर्ण होकर थोड़ा-थोड़ा क्षीण होकर मरने की बजाय, वीरों की तरह दूसरों के थोड़े-से कल्याण के लिए भी लड़कर उसी समय मर जाना क्या अच्छा नहीं है?
उत्साह से हृदय भर लो, सब जगह फैल जाओ। नेतृत्व करते समय सबके दास बन जाओ। निःस्वार्थ होओ और कभी एक मित्र को पीठ पीछे दूसरे की निंदा करते मत सुनो। अनंत धैर्य रखो, सभी सफलता तुम्हारे हाथ आएगी। सतर्क रहो, जो कुछ असत्य है, उसे पास न फटकने दो। सत्य पर डटे रहो, बस तभी हम सफल होंगे। शायद समय थोड़ा अधिक लगे, पर हम सफल अवश्य होंगे। इस तरह काम करो कि मानो तुम में से हर एक के ऊपर सारा काम निर्भर है। भविष्य की सदियाँ तुम्हारी ओर ताक रही हैं, भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है।
तुम में से हर एक को महान होना होगा – होना ही होगा। यदि तुम में आदर्श के लिए आज्ञापालन, तत्परता और प्रेम, यह तीन बातें बनी रहें तो तुम्हें कोई रोक नहीं सकता।
भारतमाता अपनी उन्नति के लिए अपनी श्रेष्ठ संतानों का पराक्रम चाहती है। जो सच्चे हृदय से भारतीय कल्याण का व्रत ले सकें तथा उसे ही जो अपने जीवन का एकमात्र कर्त्तव्य समझें, ऐसे नवयुवकों के साथ कार्य करते रहो। उन्हें जाग्रत करो, संगठित करो तथा उनमें त्याग का मंत्र फूँक दो। भारतीय युवकों पर ही यह कार्य संपूर्ण रूप से निर्भर है।
तुम काम में लग जाओ, फिर देखोगे कि इतनी शक्ति आएगी कि तुम उसे सँभाल नहीं पाओगे। दूसरों के लिए रत्तीभर काम करने से भी भीतर की शक्ति जाग उठती है। दूसरों के लिए रत्ती भर सोचने से धीरे-धीरे हृदय में सिंह का-सा बल आ जाता है। तुम लोगों से इतना प्यार करता हूँ, परंतु यदि तुम लोग दूसरों के लिए परिश्रम करते-करते मर भी जाओ, तो यह देखकर मुझे प्रसन्नता होगी।
युवा आंदोलन अश्वमेध जैसा ही महत्त्वपूर्ण है। यह बीज बोने वाला कार्य है, जिससे संस्कृति की फसल उगेगी। वरिष्ठों को सूझबूझ से इसकी सुरक्षा और खाद-पानी की व्यवस्था बनानी है।
*यह अंश समग्र क्रांति हेतु युवाओं की तैयारी किताब से लिया गया है।